लखनऊ : पाकिस्तान में जाकर भारत के लिए जासूसी करने वाले और पकड़े जाने पर वहां की जेल में 23 साल यातना झेलने वाले मनोज रंजन दीक्षित आजकल आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं।

नजीबाबाद के रहने वाले मनोज रंजन दीक्षित ने रॉ के लिए जासूसी करने के आरोप में पाकिस्तान में 23 साल यातनाएं झेली। पूरी जवानी पाकिस्तान की जेल में निकाल दी।
डेढ़ दशक पहले स्वदेश लौटे मनोज रंजन के पास आज रहने को मकान तक मयस्सर नहीं ।लॉकडाउन ने नौकरी भी ले ली। अब मनोज रंजन दीक्षित खाने-पीने को भी मोहताज है।
नजीबाबाद निवासी 56 वर्षीय मनोज रंजन दीक्षित बतौर रॉ का एजेंट बनकर बॉर्डर पार कर वर्ष 1985 में पाकिस्तान पहुंचे। पाकिस्तान में हैदराबाद के सिंध प्रांत में रहकर जल्द ही वहां के लोगों से घुल मिल गया। इमरान नाम से पाकिस्तान में रहकर उसने देश के लिए जासूसी की कमान संभाली। आजीविका के लिए ट्यूशन को जरिया बनाया। 23 जनवरी 1992 को मनोज रंजन उर्फ इमरान को जासूसी के आरोप में पाकिस्तान में गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में डालकर तरह-तरह की यातनाएं दीं लेकिन देश के साथ न तो मनोज ने गद्दारी की और न ही कोई राज खोले।
आखिरकार! जासूसी के इल्जाम में गिरफ्तार मनोज रंजन को पाकिस्तान को वर्ष 2005 में बाघा बॉर्डर पर मनोज को छोड़ना पड़ा। जिंदगी का कीमती समय पाकिस्तान में गुजारने के बाद स्वदेश लौटे मनोज रंजन दीक्षित को उम्मीद थी कि अब उसकी जिंदगी में नया मोड आएगा। भारत सरकार उसको वफादारी का इनाम देगी, उसे नौकरी मिलेगी। लेकिन हुआ सब कुछ उसकी सोच के विपरीत। स्वदेश लौटने के कुछ दिनों बाद मनोज रंजन दीक्षित को सरकारी उपेक्षा से निराशा हाथ लगी।
भारत में लौटे मनोज रंजन दीक्षित को डेढ़ दशक बीत चुका है। रोजी रोटी और रहने के लिए छत मांगने के लिए मनोज प्रदेश की राजधानी से दिल्ली तक तलवे घिस रहा है। उसका दावा है कि रॉ की ओर से उसे शुरुआती दौर में कुछ आर्थिक मदद जरूर मिली फिर किसी ने उसकी तरफ मुड़कर नहीं देखा। आर्थिक तंगियों से घिरे गत सात वर्ष से लखनऊ में रह रहे मनोज रंजन ने एक वर्ष पूर्व कैंसर पीड़ित पत्नी शोभा दीक्षित को भी गंवा दिया।
जासूसी के आरोप से मुक्त होकर स्वदेश आए मनोज रंजन दीक्षित ने आजीविका के लिए हरिद्वार जनपद के लिब्बाहेड़ी में एक ईंट भट्ठे पर दो वर्ष मुंशी का काम किया। वर्ष 2007 में शोभा से दांपत्य सूत्र में बंधे मनोज के जीवन में उस समय संकट के बादल घहराने लगे जब शादी के चंद वर्ष बाद पत्नी को कैंसर होने की पुष्टि हुई। पत्नी के इलाज के लिए वर्ष 2013 से मनोज लखनऊ में है। वर्ष 2019 में कैंसर पीड़िता पत्नी की मौत के बाद से वह लखनऊ में ही किराए के मकान में रह रहा है। हालांकि मनोज की वृद्घ मां और भाई का परिवार नजीबाबाद में रहता है। मनोज का कहना है कि सामान्य जीवन जी रहे परिवार के लिए वह बोझ नहीं बनना चाहता। इसलिए उसने लखनऊ में कई जगह नौकरी की।
लखनऊ की एक निर्माण कंपनी में बतौर स्टोर कीपर की जिम्मेदारी निभाकर पेट पाल रहे मनोज को लॉकडाउन के दौरान नौकरी से हटा दिया गया। मनोज रंजन दीक्षित का कहना है कि वह लखनऊ प्रशासन से लेकर मुख्यमंत्री तक आवास दिलाने और नौकरी लगवाने की गुहार लगा चुका है लेकिन देश के लिए सब कुछ गंवाने के बाद किसी ने उसकी ओर मदद के हाथ नहीं बढ़ाए हैं। मनोज को अब आस है तो उन देशवासियों से जिनका दिल देश की सेवा और राष्ट्र से वफादारी करने वालों के लिए धड़कता है।
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कैंसर शोध को दी पत्नी की देह
मनोज रंजन दीक्षित का दांपत्य जीवन काफी छोटा रहा। 12 वर्ष के भीतर कैंसर पीड़ित पत्नी शोभा दीक्षित का मार्च 2019 में बीमारी के चलते निधन हुआ। मृत्यु पूर्व पत्नी की अंतिम इच्छा के अनुसार मनोज दीक्षित ने उनकी देह राम मनोहर लोहिया कैंसर संस्थान लखनऊ को कैंसर शोध के लिए प्रदान की