जिम कॉर्बेट एक एसा टाइगर रिजर्व है जो गढ़वाल कुमाऊं और जनपद बिजनौर तीनों जमपदो से लगा हुआ है यहां जंगल घास के मैदान और पहाड़ियों का एक मनोरम मिश्रण है जहां सांप की तरह घुमावदार रामगंगा नदी बहती है असल सुंदरता में कॉर्बेट का दुनिया में शायद ही कोई सानी हो

एडवर्ड जिम कॉर्बेट का कुमाऊं से कैसा नाता रहा इसे करीब से जानने और समझने के लिए मैं आप को छोटी हल्द्वानी लिए चलता हूँ कालाढूंगी से सटा यह गांव जिम कॉर्बेट ने सन 1915 में बसाया था
जिम कार्बेट ने उस जमाने मे गुमान सिंह से 15,000 हजार रुपये में 220 एकड़ जमीन खरीदकर छोटी हल्द्वानी गांव की नींव रखी और अपने दोस्त मोती सिंह के लिए ‘मोती हाउस’ तथा गांववालों के लिए एक “चौपाल” भी बनवायी थी

छोटी हल्द्वानी मे उस समय गांव वालो को जंगली जानवरों के हमलों से बचाने के लिए एक दीवार का निर्माण भी कराया वह दिवार लगभग चार मील लंबी रही होगी उस दीवार का कुछ हिसदसा आज भी मौजूद है
छोटी हल्द्वानी में जिम कॉर्बेट द्वारा बनवायी चौपाल आज भी मौजूद
है लेकिन अब चौपाल एक मचान के रूप में इस्तेमाल होती है जिस पर चढ़कर दूर तक जानवरों पर नज़र रखी जाती है और अब न तो यहां पहले की तरह बैठकर कॉर्बेट ग्रामीणों की परेशानियों को सुनने आते हैं।
छोटी हल्द्वानी में त्रिलोक सिंह नामक परिवार के पास जिम कॉर्बेट की बंदूक आज भी है जिसे जिम
कॉर्बेट अपने करीबी दोस्त और उनके शिकारी साथी शेर सिंह को दे गये थे वह बंदूक आज भी सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है।
उस जमाने का जिम कॉर्बेट वाला
निवास अब संग्रहालय बन चुका है
कॉर्बेट का बचपन नैनीताल के गर्नी हाउस में बीता था जो उनके परिवार का ग्रीष्मकालीन निवास हुआ करता था सर्दियों में कॉर्बेट का परिवार कालाढूंगी में विंटर हाउस में रहने आ जाया करता था। वह घर अब कॉर्बेट की यादों को समर्पित म्युज़ियम बन चुका है।
जिम कार्बेट का मछली पकड़ने का जाल जिसे उन्होंने खुद बुना था व कॉर्बेट के हाथों कि बनायी कुर्सी मेज पालकी व उनके लिखे पत्रों की प्रतियां आदमखोर बाघों को मारने की दास्तान म्युज़ियम में जिम के बचपन से लेकर आखिरी लम्हे तक का एतिहासिक अभिलेख मौजूद है
कालाढूगी वाले इस म्युजि़यम में कॉर्बेट के प्यारे कुत्ते रॉबिन और रॉसिता की दो कब्रें भी हैं रॉबिन का जिक्र जिम कार्बेट ने अपनी पुस्तक
मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं में बड़े लाड प्यार से किया है और उसकी मौत के बाद उन्होंने भावुक अंदाज मे
लिखा है कि अब रॉबिन शिकार के लिए पहुंच चुका है अब वह मेरा इंतज़ार कर रहा होगा

कुमाऊं के जंगलों से बावस्ता रहे जिम कार्बेट के किस्से तो आप ने बहुत पढे होंगे लेकिन आज मे कुछ पुराने दस्तावेज प्रस्तुत कर रहा हू जैसे शिकारी से संरक्षक और फिर जंगलों में बसने वालों की दास्तान
के आदेश उनकी शिकार गाथाएं अद्भुत रोमांच और थ्रिल से भरपूर हैं,
जिम कॉर्बेट कि लिखी हुई किताब मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं दुनिया भर में बेस्टसेलर बन गई थी जिसके दर्जनों भाषाओं में अनुवाद मौजूद है शिकार की दास्तान में भी कॉर्बेट का हुनर जवाब था आप दिल थामकर उन्हें पढ़ सकते हैं और शरलॉक होम्स या सत्यजित रे की फेेलुदा सीरीज़ जैसा लुत्फ लेते चलते हैं।
अन्त मे जिम कार्बेट बहन मैगी के साथ आजादी के बाद मतलब 1947 मे वह कीनिया जाकर बस गए जाते हुए वह अपनी ज़मीन छोटी हल्द्वानी के ग्रामीणो को उपहार-स्वरूप दे कर चले गये थे
जिम कार्बेट किनिया से ही अपनी ज़मीन का टैक्स खुद ही अदा करते रहे यह सिलसिला 1955 में उनकी मौत तक जारी रहा
जिम कॉर्बेट का भारत छोड़कर जाना नही चाहते थे परंतु चले ब्रिटिश राज से आज़ादी के बाद पैदा होने वाले हालातों पर कॉर्बेट की अपनी चिंताएं थीं वह अंततः एक अंग्रेज़ ही थे वह आज़ादी के बाद के भारत में एक अंग्रेज़ के तौर पर अपने प्रति होने वाली सामाजिक प्रतिक्रियाओं को लेकर संशय में रहने लगे थे
हालांकि वहां के सभी लोग छोटी हल्द्वानी के अपने ‘कारपेट साहिब’ को गोरा साधु कहते थे जिसने अपने प्राणों को दांव पर लगाकर न जाने कितने नरभक्षी बाघों से उन्हें बचाया था। मैगी भी यहां रहना चाहती थी लेकिन जिम भारी मन से जाने का फैसला कर चुके थे एसे मे जिम कार्बेट की विरासत को समझे जाने की ज़रूरत है.

कुशल लेखकों में जिम कार्बेट का नाम विश्व में अग्रणीय है उन्होंने सुल्ताना डाकू को भी विस्तार से लिखा है उनकी ‘भाई इण्डिया’ पुस्तक बहुत चर्चित है कुमाऊँ और गढ़वाल उन्हें बहुत प्रिय था जिम कार्बेट के नाम पर यह जो पार्क बना है, उससे हमारा राष्ट्र बी गौरान्वित है जिम कार्बेट के प्रति यह सच्ची श्रद्धांजलि है इस लेखक ने भारत का नाम बढ़ाया है आज विश्व में उनका नाम प्रसिद्ध शिकारी के रूप में आदर से लिया जाता है।
अन्त मे जिम कार्बेट ने 19 अप्रैल 1955 मे न्येरी, केन्या मे अन्तिम सांस ली थी
प्रस्तुति——तैय्यब अली
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