इस हवेली की मालिक श्रीमती मंजू त्यागी के वंशज राजस्थान के बाढमेर से आकर नहटौर में बसे थे राजस्थान से आए चौधरी मान सिंह एक बड़े जमींदार के साथ साथ रसूखदार भी थेे

वर्ष 1914 में प्रथम विश्व युद्ध की लड़ाई से जुड़े अमूल्य दस्तावेज़ रोज़ाना ख़ाक में बदल रहे हैं उस दौर की ऐतिहासिक इमारतें ईंट-ईंट करके दरक रही हैं और नहटौर वासियो की आने वाली पीढ़ियों को शायद याद भी नहीं रहेगा कि कभी उनके पुरखे यहाँ अदालत लगाया करते थे

आज मेने नहटौर निवासी पँजाब केसरी के पत्रकार हामिद सलमानी के घुमक्कड़ी के दौरान इस हवेली मे निशान खोजने के लिए बिजनौर से नहटौर तक की घुमक्कड़ी करते समय मैने तेज़ी से धूमिल होते इस इतिहास के कुछ पुराने पन्नों को कुरेद कर देखने की कोशिश की है प्रस्तुत है कुछ अँश

नहटौर मे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की याद दिलाती यह हवेली जिस मे एक जेल बनी हुई है ब्रिटिश सरकार ने इस जेल कर न्यायालय में आफताब त्यागी को पहला जज नियुक्त किया था तभी से ब्रिटिशकाल में बना यह न्यायालय और जेल यहां अपनी ऐतिहासिक विरासत की याद दिला रही है

कस्बा नहटौर मे आज भी आम के अधेरिया बाग व दूर दूर तक प्रतिष्ठा रखने वाले त्यागीयो की बड़ी बडी हवेलियां और उनके बुलंद दरवाजे जमींदारी दौर की आज भी गवाह हैं।

आफताब त्यागी ने 1914 में विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिशो के लिए लखनऊ से लेकर मेरठ तक सहयोग मांग कर अँग्रेजो का दिल जीत लिया था उन के इस कार्य से खुश होकर ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारीयो ने आफताब त्यागी को राय साहब की उपाधि देकर पगडी पहनाई थी आफताब त्यागी नहटौर क्षेत्र के बड़े जमींदार और वकील बाद में उन्हें न्यायिक मजिस्ट्रेट भी बना दिया गया था

ताजपुर से लेकर नहटौर तक आफताब त्यागी के परिवार वालों की दर्जनो हवेलियां हुआ करती थीं इस हवेली के अन्दर दीवानखाने में न्यायालय स्थापित किया गया था जहां नगीना शेरकोट धामपुर नूरपुर के क्षेत्र के मुकदमों की सुनवाई की जाती थी नीचे फोटो मे आप जेल कि फोटो देख रहे हैं इस जेल मे मुकदमे की सुनवाई के बाद अपराधियों को कैद किया जाता था।

अंग्रेजों ने आफताब त्यागी को ‘सर’ की उपाधि दे कर उन्हे जमीन व आपसी विवादों की सुनवाई जिम्मेदारी दी हुई थी
अंग्रेजी हुकूमत से मजिस्ट्रेट पावर मिलने के बाद राय साहब आफताब त्यागी किसानों की फसलों के मामले लगान व आपसी विवाद जमीन व लेनदेन आदि के मामले सुनते थे आफताब त्यागी को एक दिन से लेकर छह माह तक की सजा देने का अधिकार प्राप्त था इस जेल में एक मुख्य दरवाजा और दो बड़ी खिड़कियां बनी हुई है जिसमें लोहे के मजबूत सरिये लगे हैं राय साहब जेल के ऊपर बने न्यायालय में वाद-विवाद सुनते थे।

आफताम त्यागी परिवार की वंशज मँजू त्यागी बताती हैं कि आफताब त्यागी और उनके कुटुंब का बहुत रुतबा था आसपास के क्षेत्र में वे बड़े जमींदार के रूप में विख्यात थे दयालू होने के नाते गरीब लोगो की मदद करते थे अंग्रेजी शासन में आफताब त्यागी की पैठ बहुत गहरी थी। वर्ष 1918 में जब एक बार दिल्ली से ब्रिटिश रानी नहटौर आई थी तो इस क्षेत्र के अंग्रेज गवर्नर के साथ आफताब त्यागी को भी रानी के साथ बैठक में बुलाया गया था।
त्यागी परिवार की वंशज मँजू त्यागी आज भी इस धरोहर को संजोए हुए हैं उनका परिवार पुरखों की विरासत और उनकी यादों को आज भी सहेजने का प्रयास कर रहा है। जहां कभी जेल परिसर होता था उस जगह को देख कर आज भी एसा लगता है कही आफताब त्यागी आज भी जज बन कर लोगो के साथ इँसाफ कर रहे हो जैसे
इस हवेली के एक कोने मे लोहे के ज़ंग खाए दो एक संदूक़ एक कोने में यूँ ही लावारिस पड़े हैं बचपन का कौतूहल बरबस उन्हें खोलने पर मजबूर कर देता है धूल का एक बग़ूला बाहर निकल आता है कुछ चिलचट्टे और मकड़ियाँ घबराकर इधर-उधर छिपने के लिए भागती हैं बक्से में ऊपर तक पुराने काग़ज़ात भरे हुए हैं जिन्हें शायद कई दशकों से किसी ने देखा नहीं होगा
दीवारों पर ब्रिटिश राज के ज़माने की नक्काशी तो हैं लेकिन सब सीलन से गल चुकी हैं आज दरकती दीवारों और ऊँचे मेहराबों वाले इस पुराने महल के एक भीतरी हिस्से से होकर गुज़रने का सौभाग्य प्राप्त हुआ

प्रस्तुति———-तैय्यब अली