चेक बाउंस के नए नियम:—बैंक द्वारा चेक बाउंस होने पर सरकार ने बनाए कुछ खास नियम इन नियमों में चेक बाउंस होने पर सख्त कानून बनाए गए हैं. RBI ने अपने चेक बाउंस होने पर नए नियम जारी किए हैं इन नियमों में कुछ अहम मुद्दे पर ज्यादा जोर दिया गया है मोदी सरकार का कड़ा फैसला.चेक बैंकिंग लेनदेन का एक ऐसा माध्यम है, जिसपर ज्यादातर लोगों और संस्थाओं द्वारा विश्वास किया जाता है.
पहले तो यह बता दे चेक बाउंसिंग होता क्या है जब किसी स्थिति में चेक बाउंस होता है तब इस स्थिति में 30 दिन के अंदर चेक देने वाले व्यक्ति को एक अधिकृत अधिवक्ता के द्वारा एक लीगल नोटिस भेजा जाता हैं। इस नोटिस में चेक बाउंस होने के कारण बताया जाता हैं।
एक चेक में अंकित राशि का नियत तिथि में भुगतान का वादा होता है. मगर जब यही चेक को तय दिवस के भीतर चेक प्राप्तकर्ता बैंक में जमा करता है और पर्याप्त धन की अनुपलब्धता की वजह से चेक पर अंकित धनराशि चेक जमा करने वाले को प्राप्त नहीं होती है तो बैंक उस चेक को dishonor कर देता है. इसी क्रिया को सामान्य भाषा में चेक बाउंस करना बोलते हैं. कुछ खास नियम मोदी सरकार ने चेक बाउंसिंग के ऊपर इस तरीके से बनाए हैं कि लोगों को इसमें ज्यादा दिक्कतें नहीं होंगी. चेक बाउंसिंग के नियम कुछ इस तरीके से हैं.
जैसे पहला नियम चेक बाउंस होने की स्थिति में आगे के 90 दिनों तक पुनः चेक जमा करने का विकल्प होता है. ऐसा आप तभी करें अगर आपको जारीकर्ता पर विश्वास हो. अन्यथा तत्काल ही कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया जा सकता है और दूसरा नियम यह है कोई चेक बाउंस होता है और चेक प्राप्तकर्ता अदालत का दरवाज़ा खटखटाता है तो Negotiable Instruments Act 143A में किए गए नए बदलावों के तहत चेक जारीकर्ता को चेक प्राप्तकर्ता को अंतरिम राहत के तौर पर चेक राशि का 20% तक का भुगतान करना होगा. इसके लिए 60 दिनों की समयसीमा निर्धारित की गई है|

अदालती कार्रवाई के दौरान अगर कोर्ट शिकायतकर्ता की शिकायत को सही मानता है तो कोर्ट आरोपी पर 20% से लेकर 100% तक दंड लगा सकती है और यह चेक के राशि के अतिरिक्त होगी. अगर आरोपी पर आपराधिक उद्देश्य साबित होता है तो कोर्ट 2 साल तक के लिए जेल भी भेज सकती है. वर्तमान में चेक बाउंस से जुड़ा कानून काफी सख्त है. जिसमें 2 साल की कैद का प्रावधान है. साथ ही जितने रुपये का चेक होगा. उसका दोगुना जुर्माना लगाया जा सकता है
चेक बाउंस से जुड़े नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 की धारा 138 में अगर कोई स्वीकार्य देनदारी हो जिसके भुगतान के लिए चेक जारी किया गया है ऐसे में चेक बाउंस होने पर जारीकर्ता के खिलाफ मामला दर्ज किया जा सकता है. शिकायतकर्ता की शिकायत झूठी पाए जाने पर कोर्ट शिकायतकर्ता से मुआवजे की राशि को व्याज सहित वसूली कर सकती है भारत में साल दर साल चेक बाउंस के मामले बढ़ते ही जा रहे है उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट और सरकार के सख्त नियमों से इस आंकड़े में कमी आएगी.

चेक बाउंस के नियमों पर कारोबारी सहमत नहीं है इस बारे में एक प्रस्ताव दिया गया है. लेकिन कारोबारी इस नियम को बदलने को लेकर नाराज हैं. मौजूदा नियम में चेक बाउंस को वर्ष 1988 से ही आपराधिक मामलों की कैटेगरी में रखा गया है. सभी प्रकार के कारोबारी इसके पक्ष में बिल्कुल भी नहीं है चेक बाउंस के मामले को सिविल मामले की कैगेटरी में लाने की इस पहल पर कारोबारियों ने आपत्ति जताई है.
यूसीपीएमए के चेयरमैन डी एस चावला कहते हैं कि चेक फेल होने की सूरत में क्रिमिनल केस लगाया जाता है. इससे जुड़े कानून जुर्माने से लेकर कैद तक का प्रावधान था, लोगों में डर था, धोखाधड़ी में कमी आई थी लेकिन नया प्रस्ताव जिसमें इस अपराध को सिविल केस में लाने पर विचार हो रहा है, इसे बंद कर देना चाहिए. उन्होंने कहा कि सिविल कोर्ट में लाखों केस 20 साल से भी ज्यादा समय से पड़े हैं. ऐसा होने पर लोगों का डर खत्म हो जाएगा और धोखाधड़ी काफी बढ़ जाएगी.
वित्त मंत्रालय की ओर से पेश प्रस्ताव के मुताबिक, नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट (चेक बाउंस), सरफैसी एक्ट (बैंक कर्ज भुगतान) एलआईसी, आरपीएफआरडी एक्ट, आरबीआई एक्ट, एनएचबी एक्ट, बैंकिंग विनियमन इन सब पर बदलाव किया गया है.
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